डिप्टी चीफ मिनिस्टर केशव प्रसाद मौर्य के खिलाफ याचिका दायर
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डिप्टी चीफ मिनिस्टर केशव प्रसाद मौर्य के खिलाफ याचिका दायर

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  • प्रदेश में उठापटक के बीच नया विवाद
  • लोकसभा चुनाव में कम सीटे मिलने पर खींचतान
  • योगी आदित्यनाथ के खिलाफ माहौल बनाने की कोशिश
  • केशव ने दोहराया-सरकार से संगठन बड़ा होता है
  • इसी ब्यान के खिलाफ हाईकोर्ट में पहुंचा विवाद

यूपी के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई। यह याचिका केशव मौर्य के उस  बयान के विरुद्ध दायर की गई है जिसमें उन्होंने सरकार से बड़ा संगठन बताया है। हाईकोर्ट के अधिवक्ता मंजेश कुमार यादव द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि डिप्टी चीफ का यह बयान उनके पद की गरिमा को कम करता है, इसके अलावा उन पर सात केस भी दर्ज हैं, ऐसे में वह डिप्टी चीफ मिनिस्टर के संवैधानिक पद पर नहीं रह सकते हैं।

दरअसल, लोकसभा चुनाव के दौरान यूपी में कम सीटे आने के बाद भाजपा में आपसी टकराव के हालात बने हुए हैं। हाल ही में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बदले जाने की भी हवा बनाई गई। इसके चलते दोनों उप मुख्यमंत्री यानी केशव प्रसाद मौर्य व ब्रजेश पाठक से योगी आदित्यनाथ की दूरी चर्चा का विषय बनी रही। यह चर्चा और प्रबल हो गयी जब केशव प्रसाद मौर्य ने एक्स पर लिखा कि सरकार से बड़ा संगठन होता है। उनका यह बयान उस वक्त आया जब योगी आदित्यनाथ से उनकी तलखी और  बढ़ना बताया जा रहा था।

केंद्र में इन सभी की बैठक हुई और फिर यह संदेश दिया गया कि ऐसी कोई भी बयानबाजी न की जाये जिससे रिश्ते व पार्टी की छवि खराब होती हो। इतना जरूर हुआ लेकिन फिर केशव प्रसाद मौर्य ने इस बात को दोहराया कि सरकार से बड़ा संगठन होता है और हमेशा रहेगा।  केशव का यह भी कहना है कि सरकार के बल पर चुनाव नहीं जाती जाता, पार्टी चुनाव लड़ती है और जीतती है।

 डिप्टी चीफ केश्व प्रसाद मौर्य के इसी बयान को आधार बनाते हुए अब हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई है। याचिकाकर्ता मंजेश यादव ने इसमें कहा है कि केशव मौर्य का यह कहना कि सरकार से बड़ा संगठन होता है, उनके पद की गरिमा को कम करता है। साथ ही सरकार की पारदर्शिता पर संदेह पैदा करती है। भाजपा, राज्यपाल और चुनाव आयोग, सभी की ओर से कोई प्रतिक्रिया या खंडन न करना, इस मुद्दे को और जटिल बनाता है।

याचिका में केशव मौर्य के आपराधिक इतिहास का भी जिक्र किया गया है। कहा गया कि उपमुख्यमंत्री बनाए जाने से पहले उन पर सात आपराधिक मामले दर्ज हैं। लिहाजा ऐसे रिकॉर्ड वाले किसी व्यक्ति को संवैधानिक पद पर नियुक्त करना गलत है।

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