मदरसों के 17 लाख छात्रों को सुप्रीम कोर्ट ने दी राहत, हाईकोर्ट के फैसले पर लगाई रोक
मदरसों में पढ़ने वाले करीब 17 लाख छात्रों को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिल गई है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के उस फैसले पर रोक लगा दी है जिसमें ‘यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004’ को असंवैधानिक बताया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट प्रथम दृष्टया सही नहीं है। ये कहना गलत होगा कि यह मदरसा एक्ट धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन करता है।
हाईकोर्ट ने अपना यह फैसला 22 मार्च को 22 मार्च को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने यूपी मदरसा एक्ट को असंवैधानिक घोषित कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि यह धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन है। साथ ही UP सरकार को एक स्कीम बनाने को कहा है, ताकि मदरसों में पढ़ रहे छात्रों को औपचारिक शिक्षा प्रणाली में शामिल किया जा सके।
दरअसल, 10 सितंबर 2022 से 15 नवंबर 2022 तक यूपी के मदरसों का सर्वे कराया था। इस समय सीमा को बाद में 30 नवंबर तक बढ़ा दिया गया था। सर्वे में प्रदेश में करीब 8441 मदरसे ऐसे मिले थे, जिनकी मान्यता नहीं थी। सबसे ज्यादा मुरादाबाद में 550 गैर मान्यता प्राप्त मदरसे मिले थे। इसके बाद सिद्धार्थनगर में 525 और बहराइच में 500, बस्ती में 350 मदरसे बिना मान्यता मिले थे। राजधानी लखनऊ में 100 मदरसों की मान्यता नहीं थी। इसके अलावा, प्रयागराज-मऊ में 90, आजमगढ़ में 132 और कानपुर में 85 से ज्यादा मदरसे गैर मान्यता प्राप्त मिले थे।
सरकार का कहना है कि फिलहाल प्रदेश में 15 हजार 613 मान्यता प्राप्त मदरसे हैं। अक्टूबर 2023 में यूपी सरकार ने मदरसों की जांच के लिए SIT का गठन किया था। SIT मदरसों को हो रही विदेशी फंडिंग की जांच कर रही है। बता दें कि यूपी मदरसा बोर्ड एजुकेशन एक्ट 2004 उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पारित कानून था। इसे राज्य में मदरसों की शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए बनाया गया था। इस कानून के तहत मदरसों को न्यूनतम मानक पूरा करने पर बोर्ड से मान्यता मिल जाती थी।
शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी। इसके साथ ही केंद्र और यूपी सरकार से जवाब मांगा है। कोर्ट का कहना है कि हाईकोर्ट के फैसले से 17 लाख छात्रों पर असर पड़ेगा। छात्रों को दूसरे स्कूल में ट्रांसफर करने का निर्देश देना ठीक नहीं है। शुक्रवार का यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूण, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने दिया है। बेंच ने कहा कि हाईकोर्ट प्रथम दृष्टया सही नहीं है। ये कहना गलत होगा कि यह मदरसा एक्ट धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन करता है।
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