बसपा के सामने अपने परम्परागत दलित वोट को ही बचा पाना बड़ी चुनौती
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बसपा के सामने अपने परम्परागत दलित वोट को ही बचा पाना बड़ी चुनौती

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लंबी खामोशी के बाद लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी जरूर उतर गई है लेकिन मौजूदा हालात उसकी खोई हुई प्रतिष्ठा पर लगातार डेंट का काम कर रहे हैं। इस लोकसभा चुनाव में पार्टी प्रमुख मायावती के साथ ही उनके भतीजे आकाश आनंद की भी कड़ी परीक्षा होनी है।  मायावती के उत्तराधिकारी के रूप में पहली बार पार्टी में अहम भूमिका निभाने उतरे आकाश आनंद यूपी समेत बाकी राज्यों में भी पार्टी का जनाधार कैसे बढ़ायेंगे यह बड़ा सवाल है।

पिछले पांच साल के रेकार्ड पर नजर डाली जाये तो बसपा सुप्रीमो की सक्रियता ट्वीटर के अलावा अन्य कहीं नजर नहीं आ रही है। ट्वीटर भी यदि उन्होंने मौजूदा सरकार का किसी मुद्दे पर विरोध भी किया तो बेहद ही अप्रत्याशित तरीके से। वैसा तो बिल्कुल भी नहीं जिसके लिये मायावती जानी जाती रही हैँ। इस पांच साल की खामोशी से प्रदेश व प्रदेश के बाद बहुत कुछ बदल गया है।

गंभीर बात यह है कि बसपान पिछले लोकसभा चुनाव में यूपी के अलावा किसी भी राज्य में उसका एक भी सांसद चुन कर नहीं आया। चुनकर आना तो  बहुत बड़ी बात थी, अधिकांश जगह उनके प्रत्याशी अपनी जमानत तक नहीं बचा पाये। वह भी तब जबकि पार्टी ने 26 राज्यों में चुनाव लड़ा था। इनमें से पचास फीसदी राज्यों में पार्टी को एक प्रतिशत वोट भी नहीं मिल पाया। हां, उत्तर प्रदेश में जरूर पार्टी का प्रतिशत 19.26 रहा और दस सांसद भी चुनकर आ गये।

2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा का मात्र एक ही विधायक जीत पाया। हां, 2019 में समाजवादी पार्टी से गठबंधन के कारण दस सीट जरूर मिले थी।  अब पांच साल से लगातार सक्रिय राजनीति से दूर बसपा प्रमुख मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को यूपी व उत्तराखंड की कमान सौंपी है। उनके सामने अब न सिर्फ पार्टी की शाख बचाने की बड़ी चुनौती है बल्कि दलितों पर ही अपना कब्जा कायम रखना भी है। वर्तमान में पार्टी जिस दौर से गुजर रही है‚ उससे कहीं बेहतर स्थिति में तकरीबन तीन दशक पहले साल-1996 में थी।

इस दौरान पार्टी का इतिहास यह भी बताता है कि बसपा सुप्रीमो ने अन्य राज्यों में पार्टी की दशा सुधारने के लिये अपने कई खास लोगों को कमान सौंपी जरूर लेकिन वह कोई करिश्मा नहीं दिखा पाये हैं। लोकसभा चुनाव में आकाश के सामने देश के कम से कम 24 राज्यों में जनाधार बढ़ाकर पार्टी के पहले के प्रदर्शन को सुधारने की ही बड़ी चुनौती है। दायित्व मिलने के बाद से आकाश दूसरे राज्यों में सक्रिय भी हैं, लेकिन एकला चलो की राह पकड़ने से बसपा के सामने चुनौतियां कम नहीं हैं।

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