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पूर्व सॉलिसिटर जनरल समेत 500 वकीलों ने बताया कुछ राजनीतिक समूह से न्याय पालिका को खतरा
पूर्व सॉलिसिटर जनरल समेत 500 वकीलों ने बताया कुछ राजनीतिक समूह से न्याय पालिका को खतरा
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पूर्व सॉलिसिटर जनरल समेत 500 वकीलों ने बताया कुछ राजनीतिक समूह से न्याय पालिका को खतरा

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देश के पूर्व सॉलिसिटर जनरल हरीश साल्वे समेत 500 से ज्यादा वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ को पत्र भेजकर कहा है कि न्यायपालिका खतरे में है और इसे राजनीतिक और व्यावसायिक दबाव से बचाना होगा। उनका कहना है कि न्यायिक अखंडता को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है। कुछ लोग छिपकर न्याय पालिका पर  वार करते हुए सवाल खड़े कर रहे हैं। कोर्ट की छवि से लगातार खिलवाड़ किया जा रहा है। ऐसे में अब हम सभी को ऐसे समूह के खिलाफ खड़ा होने की जरूरत है।

न्यूज एजेंसी पीटीई के मुताबिक पत्र में अधिवक्ताओं ने कहा है कि एक विशेष समूह न्यायपालिका पर दबाव डालने की कोशिश कर रहा है। यह ग्रुप न्यायिक व्यवस्था को प्रभावित कर रहा है। अपने घिसे-पिटे राजनीतिक एजेंडा के तहत उथले आरोप लगाकर अदालतों को बदनाम करने की कोशिश कर रहा है। इन हरकतों से न्यायपालिका की  छवि खराब हो रही है। राजनीतिक मामलों में दबाव के हथकंडे आम बात हैं, खासतौर से उन मामलों में जिनमें कोई राजनेता भ्रष्टाचार के आरोप में घिरा है।

पत्र में कहा गया है कि यह देखकर भी परेशानी होती है कि कुछ वकील दिन में किसी राजनेता का केस लड़ते हैं और रात में वे मीडिया में चले जाते हैं, ताकि फैसले को प्रभावित किया जा सके। ये बेंच फिक्सिंग की थ्योरी भी गढ़ रहे हैं। यह हमारी अदालतों की गरिमा पर किया गया हमला है।

इस पत्र में मुख्यत दो बिंदुओं पर  गहन चिंता जताई गई है। कहा गया है कि यह देखकर हैरानी होती है कि कुछ राजनेता किसी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हैं और फिर अदालतों में उन्हें बचाने पहुंच जाते हैं। अगर अदालत का फैसला उनके पक्ष में नहीं जाता है तो वे कोर्ट के भीतर ही कोर्ट की आलोचना करते हैं और फिर बाद में मीडिया में पहुंच जाते हैं। इन लोगों का यह दोहरा चरित्र न्याय पालिका की विश्वसनीयत के लिये बड़ा खतरा है।

पत्र में यह भी कहा गया है कि कुछ लोग अपने केस से जुड़े न्यायाधीशों के बारे में झूठी जानकारियां सोशल मीडिया पर वायरल करते हैं। ऐसा वे अपने केस में अपने ढंग से फैसले का दबाव बनाने के लिए करते हैं। ये हमारी अदालतों की पारदर्शिता के लिए खतरा है और कानूनी उसूलों पर हमला है। इनकी टाइमिंग भी तय होती है। जब देश चुनाव के मुहाने पर खड़ा है, तब ये ऐसा कर रहे हैं। हमने यह चीज 2018-19 में भी देखी थी।

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