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वन नेशन वन इलेक्शन के लिये 18,626 पृष्ठ की रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपी
वन नेशन वन इलेक्शन के लिये 18,626 पृष्ठ की रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपी
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वन नेशन वन इलेक्शन के लिये 18,626 पृष्ठ की रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपी

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वन नेशन वन इलेक्शन पर विचार कर रही कमेटी ने आज अपनी रिपोर्ट देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंप दी। इस रिपोर्ट में 18,626 पन्ने हैं। रिपोर्ट में 2029 में एक  साथ चुनाव कराने की सिफारिश की गई है। इसमें लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनाव के लिये एक ही मतदाता सूची रखने की बात  भी कही गई है। रिपोर्ट में यह  भी कहा गया है कि विधि आयोग के प्रस्ताव पर सभी दल सहमत हुए तो यह 2029 से ही लागू होगा। साथ ही इसके लिए दिसंबर 2026 तक 25 राज्यों में विधानसभा चुनाव कराने होंगे।

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली कमेटी ने सिफारिश की है कि मध्यप्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और मिजोरम विधानसभाओं का कार्यकाल 6 महीने बढ़ाकर जून 2029 तक किया जाए। उसके बाद सभी राज्यों में एक साथ विधानसभा-लोकसभा चुनाव हो सकेंगे। रिपोर्ट में इस बात का भी उल्लेख है कि यह रिपोर्ट 2 सितंबर 2023 को पैनल गठन के बाद से हितधारकों और एक्सपर्ट्स परामर्श और 191 दिन के रिसर्च का नतीजा है।

रिपोर्ट के मुताबिक भाजपा और उसके सहयोगी दलों ने एक साथ चुनाव के पक्ष में राय दी है जबकि कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों- DMK, NCP और TMC ने इसका विरोध किया है। BJD और AIADMK इसके समर्थन में हैं। समिति पिछले साल सितंबर में बनी थी। रिपोर्ट में निर्वाचन आयोग, विधि आयोग और कानूनी विशेषज्ञों की राय भी शामिल है। रिपोर्ट में कहा गया है कि एक साथ चुनाव कराना जनहित में होगा। इससे आर्थिक विकास तेज होगा और महंगाई नियंत्रित होगी।

अब यह रिपोर्ट लोकसभा चुनाव के बाद कैबिनेट के समक्ष रखी जाएगी। कैबिनेट के फैसले के अनुरूप कानून मंत्रालय संविधान में वह नए खंड जोड़ेगा, जिसकी सिफारिश विधि आयोग ने की है, ताकि चुनाव एक साथ हो सकें। इसे संसद के दोनों सदनों में पारित कराया जाएगा और राज्य विधानसभाओं से भी प्रस्ताव पारित करने की सिफारिश की जाएगी। इसके बाद तीन चरणों में 2029 तक लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ सुनिश्चित किए जा सकेंगे।

बता दे कि अभी तक भारत में राज्यों के विधानसभा और देश के लोकसभा चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं। वन नेशन वन इलेक्शन स्पष्ट करता है कि पूरे देश में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हों। यानी मतदाता लोकसभा और राज्य के विधानसभाओं के सदस्यों को चुनने के लिए एक ही दिन, एक ही समय पर या चरणबद्ध तरीके से अपना वोट डालेंगे। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही हुए थे लेकिन 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले ही भंग कर दी गईं। उसके बाद 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई। इस वजह से एक देश-एक चुनाव की परंपरा टूट गई।

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