
पैसा लेकर सदन में सवाल पूछा या वोट किया तो विशेषाधिकार का लाभ नहीं मिलेगा,अब होगा मुकदमा दर्ज
सुप्रीम कोर्ट की सात सदस्यीय संविधान पीठ ने आज 26 साल पुराने अपने फैसले को पलटते हुए कहा कि यदि कोई सांसद अथवा विधायक पैसा लेकर सदन में वोट करता है अथवा सवाल पूछता है तो विशेषाधिकार के तहत मुकदमे में उसे छूट नहीं मिलेगी। संविधान पीठ ने स्पष्ट कहा कि हम 1998 में दिए गए जस्टिस पीवी नरसिम्हा के उस फैसले से सहमत नहीं है, जिसमें सांसदों और विधायकों को सदन में भाषण देने या वोट के लिए रिश्वत लेने के लिए मुकदमे से छूट दी गई थी। कोर्ट ने सांसद विधायकों को ऐसे मामलों में कानूनी संरक्षण देने से इनकार किया है।
यह फैसला CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस ए एस बोपन्ना, एम एम सुंदरेश, पी एस नरसिम्हा, जेबी पारदीवाला, संजय कुमार और मनोज मिश्रा की संविधान पीठ ने दिया है। दरअसल, 1998 में पांच जजों की संविधान पीठ ने 3:2 के बहुमत से तय किया था कि ऐसे मामलों में जनप्रतिनिधियों पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। इस पर CJI ने कहा कि यदि कोई घूस लेता है तो केस बन जाता है। यह मायने नहीं रखता है कि उसने बाद में वोट दिया या फिर स्पीच दी। आरोप तभी बन जाता है, जिस वक्त कोई सांसद घूस स्वीकार करता है।
CJI ने कहा कि अगर कोई सांसद भ्रष्टाचार और घूसखोरी करता है तो यह चीजें भारत के संसदीय लोकतंत्र को बर्बाद कर देंगी। आर्टिकल 105/194 के तहत मिले विशेषाधिकार का मकसद सांसद के लिए सदन में भय रहित वातावरण बनाना है। अगर कोई विधायक राज्यसभा इलेक्शन में वोट देने के लिए घूस लेता है, तो उसे भी प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट का सामना करना पड़ेगा।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को टीएमसी की पूर्व सांसद महुआ मोइत्रा केस से भी जोड़ कर देखा जा रहा है। महुआ पर आरोप है कि उन्होंने उद्योगति को लाभ पहुंचाने की नीयत से सदन में सवाल पूछे थे। जांच समिति के फैसले के बाद महुआ की संसद सदस्यता खत्म कर दी गई है। इसके अलावा हाल फिलहाल में हुई राजनीतिक होर्स ट्रेडिंग पर भी माना जा रहा है कि रोक लगाने में सफलता मिलेगी।
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