दिल्ली एनसीआर में पटाखों पर लगा बैन हुआ धुआं धुआं,मेरठ पांचवे नंबर पर
- दिल्ली एनसीआर में पटाखों पर प्रतिबंध बेअसर
- देर रात तक पटाखों ने कुछ मचाया उधम
- अपनी धमक से प्रतिबंध को लगाया पलीता
- औरंगजेब के शासन में लगा था प्रतिबंध !
- ऐसे प्रतिबंध क्यों लगाये जाते हैं, जो पूरे न हो पायें
- बैन की हवा निकलने पर जवाबदेही किसकी ?
दिल्ली एनसीआर में पटाखों पर प्रतिबंध के बावजूद लोगों ने जमकर आतिशबाजी की। प्रतिबंध के प्रयास पटाखे फोड़ने वालों के जुनून को ढिगा नहीं पाये। देर रात तक भी पटाखों का कानफोड़ू शोर वातावरण में अपनी धमक बनाये हुए था। इसका असर यह हुआ कि दिल्ली एनसीआर में जहरीली हवाओं का स्तर चार सौ हो गया। हां सुबह होते होते जरूर इसमें गिरावट आई और दिल्ली का AQI 391 दर्ज किया गया है। वहीं पटाखों ने मेरठ को देश के सबसे प्रदूषित शहरों की श्रृंखला में पांचवें स्थान पर ला दिया। मेरठ में AQI स्तर 302 रहा। इससे उपर संभल 388, रामपुर 381, नई दिल्ली 354,मुरादाबाद 345 रहा। ये सभी आंकड़े एक नवम्बर यानी आज सुबह करीब छह बजे के हैं। बड़ा प्रश्न यह है कि बहुसंख्यकों की भावनाओं से विपरीत ये बैन क्यों लगाये जाते हैं और लगाये जाने के बाद बेअसर क्यों रह जाते हैं ?
सवाल उठता है कि क्या इस तरह के प्रतिबंध पहली बार अथवा आजकल ही लगाये जा रहे हैं। तो जवाब होगा नहीं..। इतिहासकार बताते हैं कि इसकी शुरूआत औरंगजेब के समय में हुई। अक्सर कहा जाता है कि औरंगजेब ने हिंदुओं के त्योहार दीवाली पर आतिशबाजी करने पर रोक लगा दी थी। हालांकि उसने ये रोक दीवाली से कुछ समय पहले बिना किसी त्योहार का नाम लिए लगाई थी। हां, समझा यही गया कि ये प्रतिबंध जानबूझकर दीवाली पर आतिशबाजी रोकने के लिए लगाया है।
बताया जाता है कि औरंगजेब के इस फैसले ने बहुसंख्यक हिंदुओं को नाराज कर दिया था लेकिन औरंगजेब ने अपना फैसला वापस नहीं लिया। तब 1667 में औरंगजेब का साफ आदेश था कि किसी भी तरह के त्योहारों पर पटाखों और आतिशबाज़ी का इस्तेमाल नहीं होगा। हालांकि इसका तोड़ बहुसंख्यकों ने इस तरह से निकाला कि आतिशबाजी तो चोरी छिपे की लेकिन घर के बाहर दीपक बड़ी संख्या में जलाये। घरों को पूर्व की तुलना में और अधिक सजाकर एक संदेश देने का कार्य किया। यह प्रतिबंध औरंगजेब के जीते जी लागू रहा और मरने के बाद धीरे धीरे समाप्त भी हो गया।
अब बात करते हैं वर्तमान की। दिल्ली में दीपावली के दिन (31 अक्टूबर) शाम 5 बजे रियल टाइम एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 186 रिकॉर्ड किया गया था। यानी 10-12 घंटों में ही हवा सामान्य से बेहद खराब श्रेणी में चली गई। दरअसल, दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (DPCC) ने एक जनवरी 2025 तक पटाखों को बैन किया था। पटाखे बनाने, उन्हें स्टोर करने, बेचने और इस्तेमाल पर रोक है। इनकी ऑनलाइन डिलीवरी पर भी रोक लगाई गई थी। यह बात और रही कि ये सभी आदेश कागजी ही साबित हुई। पटाखे खूब बिके, और खूब फोड़े भी गये।
यहां यह सवाल भी उठता है कि आखिर AQI है क्या। दरअसल, AQI एक तरह का थर्मामीटर है। बस ये तापमान की जगह प्रदूषण मापने का काम करता है। इस पैमाने के जरिए हवा में मौजूद CO (कार्बन डाइऑक्साइड ), OZONE, (ओजोन) NO2 (नाइट्रोजन डाइऑक्साइड) , PM 2.5 (पार्टिकुलेट मैटर) और PM 10 पोल्यूटेंट्स की मात्रा चेक की जाती है और उसे शून्य से लेकर 500 तक रीडिंग में दर्शाया जाता है। हवा में पोल्यूटेंट्स की मात्रा जितनी ज्यादा होगी, AQI का स्तर उतना ज्यादा होगा।
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