बीवीजी पर नगर निगम फिर मेहरबान, तीन माह का अवसर, जिम्मेदार अफसरों पर भी चुप्पी
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बीवीजी पर नगर निगम फिर मेहरबान, तीन माह का अवसर, जिम्मेदार अफसरों पर भी चुप्पी

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  • नगर निगम ने बीवीजी को दिया अंतिम अवसर
  • तीन माह में निर्धारित शर्तें करने होंगी पूरी
  • हर माह करोड़ों वसूलने के बाद भी काम पूरा नहीं
  • एएमएनए प्रमोद कुमार व नगर स्वास्थ्य अधिकारी पर कार्रवाई नहीं
  • डा.लक्ष्मीकांत वाजपेयी दोनों अफसरों को कठघरे में खड़ा कर चुके
  • अखिर इन दोनों नौकरशाह की जवाबदेही क्यों तय नहीं ?

नगर निगम के जिम्मेदार अफसरों के संरक्षण में शहर को कूड़े के ढेर पर  बैठाने वाली बीवीजी इंडिया लिमिटेड पर एक बार  फिर से नगर निगम मेरठ की मेहरबानी हो गयी है।  नगर निगम ने शर्तों के साथ बीवीजी कंपनी को तीन माह का अंतिम अवसर प्रदान कर दिया है। गंभीर बात यह है कि बीवीजी कंपनी जिस कार्य के लिये यहां रखी गयी थी उसने वही कार्य नहीं किया। अलबत्ता नगर निगम पर हर माह करोड़ों का बिल जरूर चढ़ता रहा। इसके अलावा अपर मुख्य नगर अधिकारी प्रमोद कुमार और नगर स्वास्थ्य अधिकारी हरपाल जिन पर कंपनी की मोनीटरिंग का जिम्मा था उनके खिलाफ नगर निगम ने अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हैं। नगर निगम ने शहर की सफाई व्यस्था सुदृद्ध करने व घरों से कूड़ा कलेक्शन करने का जिम्मा बीवीजी कंपनी को दिया था, जिसमें फेल होने पर पिछले दिनों निलंबित कर दिया था।

दिलचस्थ्प तथ्य यह भी है कि बेहद प्रतिष्ठित बीवीजी कंपनी पर देश के अधिकांश एयरपोर्ट,प्रमुख सरकारी संस्थानों व भारत की संसद में भी स्वच्छता बनाये रखने के कार्य को बखूबी अंजाम दे रही है लेकिन यह मेरठ में आकर फेल हो गयी। बीवीजी के काम के पर्यवेक्षण की जिम्मेदारी अपर नगर आयुक्त प्रमोद कुमार व नगर स्वास्थ्य अधिकारी हरपाल के पास थी। कंपनी को जिन आरोपों के चलते निलंबित किया गया उनके लिये कंपनी को तो दोषी ठहराया गया लेकिन इन दोनों ही अफसरों की नगर आयुक्त सौरभ गैंगवार ने जिम्मेदारी और जवाबदेही तय नहीं की।

इस बीच, निगम की मूल्यांकन समिति ने डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन,यूजर चार्ज वसूली समेत अनुबंध की शर्तों के हिसाब से कंपनी के कार्यों की रिपोर्ट दी है। रिपोर्ट में बताया गया कि कंपनी को अनुबंध के छह माह में साठ फीसदी यूजर चार्ज वसूल करना था लेकिन कंपनी ने केवल दस प्रतिशत ही वसूली की। कंपनी को डोर टू डोर कूड़ा उठाने के लिये शत प्रतिशत आवासीय व व्यापारिक प्रतिष्ठानों तक 73 वार्डों में जाना था लेकिन कंपनी केवल चालीस फीसदी ही घरों तक पहुंच पाई। अनुबंध के मुताबिक कंपनी को गीला व सूखा कूड़ा अलग अलग करना था लेकिन ऐसा नहीं हुआ। घरों पर क्यूआर कोड चस्पा करने थे लेकिन नहीं हुए। यह बात और है कि कंपनी हर माह करीब ढाई करोड रुपये के बिल नगर निगम के जिम्मेदार अफसर अपर नगर आयुक्त प्रमोद कुमार व नगर स्वास्थ्य अधिकारी हरपाल के समक्ष रखती रही और भुगतान लगातार  होता रहा। इस तरह नगर निगम मेरठ को करोड़ों के राजस्व का नुकसान उठाना पड़ा।

इसे लेकर पिछले दिनों कुछ पार्षदों ने बीवीजी की कार्यप्रणाली व व्याप्त भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाते हुए नगर आयुक्त और महापौर हरिकांत आहलूवालिया को शिकायती पत्र सौंपा था। इसे लेकर निगम निगम में शोरशराबा भी किया गया था लेकिन बाद में सभी शांत होकर बैठ गये। सवाल उठना लाजिमी है कि यदि नगर निगम के जिम्मेदार अफसर शहर को कूड़े के ढेर पर बैठाते हुए भ्रष्टाचार में लिप्त हैं तो महापौर हरिकांत आहलूवालिया चुप क्यों हैं।

वहीं, हाल ही में राज्य सभा सदस्य डा.लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने मंडलायुक्त को भेजे पत्र में इन दोनों अफसरों की जिम्मेदारी व जवाबदेही तय करने की बात कही थी।  साथ ही भ्रष्टाचार की तरफ भी साफ इशारा किया है। डा.लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने बीवीजी कंपनी की वकालत भी इस पत्र में की थी।

आज अपर नगर आयुक्त प्रमोद कुमार द्वारा बीवीजी को एक पत्र जारी कर दिया गया है। इस में डोर टू डोर कूड़ा कलेक्शन का कार्य उक्त अनुबंध व आरएफपी की शर्तों के मुताबिक किये जाने हेतु निम्न शर्तों के साथ तीन माह का अंतिम अवसर देने की बात कही गई है। शर्तों में यूजर चार्ज की वसूली शत प्रतिशत घरों से करने, इसकी मानिटरिंग के लिये आनलाइन पोर्टल बनाने,शत प्रतिशत घरों से कूड़ा कलेक्शन कराना,खत्ते व डलावघरों की नियमित सफाई कराना,सभी डोर टू डोर वाहनों की जीपीएस ट्रैकिंग सिस्टम द्वारा मॅानिटरिंग कराना आदि शामिल किया गया है।

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