मेरठ हापुड़ लोकसभा सीट ने अखिलेश यादव को पशोपेश में डाला
- भानु प्रताप सिंह को उतारा है चुनाव मैदान में
- आपसी खींचतान दूर करने को उठाया था यह कदम
- अब भानु प्रताप ही पार्टी के गले की फांस बने
- योगेश वर्मा को प्रशासन कर सकता है जिला बदर
- 2 अप्रैल को सामने आ सकता है जिला बदर पर प्रशासन का फैसला
- 4 अप्रैल को नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि
- अवतार सिंह भड़ाना की नई एंट्री ने बनाये नये समीकरण
मेरठ हापुड़ लोकसभा सीट ने समाजवादी पार्टी नेतृत्व को पशोपेश में डाल दिया है। बड़े नेताओं की आपसी खींचतान के चलते भानु प्रताप सिंह को टिकट जरूर दे दिया लेकिन अब स्थिति न उगले और न ही निगले बन रही है। जिन नेताओं की खींचतान के चलते यह टिकट दिया गया था अब वे भानु को चुनाव लड़ाने की बजाय अपने टिकट के लिये लखनऊ में डेरा डाले हुए हैं। नामांकन की अंतिम तिथि चार अप्रैल है जबकि अभी तक पार्टी किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाई है।
पिछले तीन चार रोज से हस्तिनपुर के पूर्व विधायक योगेश वर्मा ने लखनऊ में टिकट पाने के लिये पूरा दम लगाये हुए हैं। लगातार सूचना मिल रही है कि आज शाम तक टिकट घोषित हो जायेगा लेकिन रोज ही कल कल हो रही है। सोशल मीडिया पर भी उनके पक्ष में अभियान चला हुआ है। वहीं शाहिद मंजूर भी बराबर टिकट पाने की जुगत में लगे हुए हैं। नये घटनाक्रम के बीच मेरठ से पूर्व सांसद अवतार सिंह भड़ाना को एकाएक लखनऊ बुलाये जाने से भी नये संकेत मिल रहे हैं।
मेरठ की समाजवादी पार्टी की राजनीति में मुख्यत शाहिद मंजूर, रफीक अंसारी, अतुल प्रधान व योगेश वर्मा के नाम सामने आते हैं। रफीक अंसारी शहर विधायक है जबकि शाहिद मंजूर और अतुल प्रधान भी। योगेश वर्मा पिछली बार हस्तिनपुर से विधानसभा चुनाव लड़े थे लेकिन दिनेश खटीक के हाथों पराजित हो गये थे। ऐसे में मेरठ नगर निगम चुनाव में वह अपनी पत्नी सुनीता वर्मा को टिकट दिलाने की दौड़ में शामिल थे लेकिन सरधना विधायक अतुल प्रधान अपनी पत्नी सीमा प्रधान के लिये टिकट पाने में सफल रहे।
महापौर चुनाव में सीमा प्रधान को तीसरे स्थान पर रह कर संतोष करना पड़ा। कारण साफ रहा कि सपा के इन बाकी तीनों दिग्गजों ने ही इस चुनाव से दूरी बनाये रखी। रोड शो के दौरान अखिलेश यादव रफीक अंसारी को उनके तंग गलियों वाले घर पहुंचकर रूठों को मनाने की कोशिश जरूर की लेकिन सफलता नहीं मिली। पिछला अनुभव ध्यान में रखते हुए ही सपा नेतृत्व के सामने सभी को साधना किसी टेढ़ी खीर से कम नहीं हैं। चारों में से किसी को भी टिकट देने की स्थिति में बाकी तीन का विरोध पार्टी को झेलना पड़ेगा यह बात भी पार्टी नेतृत्व से छिपी नहीं है। और यही कारण रहा कि बाहरी भानु प्रताप सिंह को यहां से मैदान में उतार दिया गया।
अब बात करते हैं योगेश वर्मा की। पिछले तीन चार दिन से उनके पक्ष में पत्ते खुलने की बात सामने आ रही थी। लेकिन यहां भी एक बड़ा पेंच फंस गया है। मेरठ जिला प्रशासन ने योगेश वर्मा की फाइल खोल रखी है। 31 मुकदमें दर्ज होने के बाद योगेश को जिला बदर किया जा सकता है। अभी 20 मार्च को इस मामले में एडीएम प्रशासन के समक्ष सुनवाई थी। अब बताया जा रहा है कि दो अप्रैल को इस मामले में निर्णय लिया जाना अपेक्षित है।
सूत्रों का कहना है कि योगेश वर्मा को टिकट मिलने की स्थिति में दो अप्रैल उनके मार्ग का बड़ा अवरूध बन सकती है। यदि योगेश को जिला बदर कर दिया गया तो जाहिर है कि वह मेरठ की सीमा में प्रवेश नहीं कर पायेंगे। ऐसे में एक विकल्प योगेश वर्मा ने पार्टी नेतृत्व को यह भी दिया है कि उनकी जगह उनकी पत्नी सुनीता वर्मा को टिकट दे दिया जाये। ऐसे में हापुड़ में रहकर सुनीता को चुनाव लड़ाया जा सकता है।
उधर, एकाएक ही इस सारे समीकरण में अवतार सिंह भड़ाना की एंट्री हो गयी है। अवतार सिंह ने 1999 में मेरठ लोकसभा से जीत हासिल की थी। वह चार बार सांसद रह चुके हैं। सारे घटनाक्रम को देखते हुए पार्टी किस पर दांव लगायेगी इस पर सभी की नजर लगी हुई है।
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