और इस तरह जीत गये हरिकांत अहलूवालिया,फर्स्ट बाइट का सटीक विश्लेषण
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और इस तरह जीत गये हरिकांत अहलूवालिया,फर्स्ट बाइट का सटीक विश्लेषण

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  • फर्स्ट बाइट टीवी का विश्लेषण सटीक निकला
  • मतदान के बाद ही हरिकांत अहलूवालिया की जीत बताई थी तय
  • अनस चौंकाने वाला फैक्टर साबित होगा इसकी की थी भविष्यवाणी
  • मुस्लिमों का रुझान सपा से खासा हुआ कम
  • बैरिस्टर की पार्टी ज्यादा हितों की पैरवी करने वाली आई नजर
  • हरिकांत हिंदू चेहरा बन कर तेजी से उभरे
  • एमएलसी धर्मेंद्र भारद्वाज व मंत्री सोमेंद्र की जोड़ी भी रही असरदार
  • कैंट विधायक अमित अग्रवाल की मेहनत भी रंग लाई

सभी लोग सिर्फ कयास लगा रहे थे, या फिर यह कहा जाये कि चित भी अपनी और पट भी अपनी सरीखा रास्ता चुन रहे थे लेकिन फर्स्ट बाइट ने साफ बता दिया था कि मेरठ नगर निगम में भाजपा का कमल खिल रहा है, यानी भाजपा की जीत तय है। चुनाव नतीजे सामने आये तो फर्स्ट बाइट की खबर पर मोहर भी लग गई। हरिकांत अहलूवालिया भी जीत के प्रति इतने आश्वस्त थे कि आठ राउंड की मतगणना व 75 हजार वोटों से आगे होते ही उन्होंने अपनी जीत घोषित कर दी। फूल मालाएं पहना दी गई और उन्होंने मीडिया के सामने कह भी दिया कि यह जीत पार्टी कार्यकर्ताओं व भाजपा की कार्यशैली से प्रभावित होकर मतदाताओं ने दी है।

चुनावी रणनीति पर नजर डाली जाये तो यह बात निश्चित रूप से कही जा सकती है कि असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM के प्रत्याशी अनस कुरैशी जीत दर्ज नहीं करा सके लेकिन सपा प्रत्याशी सीमा प्रधान की हार का मुख्य कारण जरूर बन गये। कई बारगी ऐसा हुआ जब सीमा प्रधान व अनस के कुल वोटों की संख्या भाजपा प्रत्याशी हरिकांत अहलूवालिया से ज्यादा हो गई। मुस्लिम बाहुल्य के कई वार्ड ऐसे भी रहे जहां अनस के पक्ष में सीमा प्रधान की तुलना में अधिक मतदान हुआ। यही कारण रहा कि कई राउंड में अनस सीमा प्रधान से बढ़त बनाये हुए नजर आये। सवाल उठ रहा है कि ओवैसी की पार्टी एकाएक ही नगर निगम चुनाव में मुस्लिमों की चहेती कैसे बन गयी।

मतदान के तुंरत बाद फर्स्ट बाइट ने यह किया था यह विश्लेषण 👇

हाल फिलहाल की राजनीति में अखिलेश यादव जहां बैकफुट पर नजर आये वहां मुस्लिमों के एक समुदाय ने मान लिया कि सपा केवल उन्हें वोट बैंक की तरह इस्तेमाल कर रही है, वह सच्ची हितैषी नहीं है। खास तौर पर तब जबकि अतीक अहमद हत्याकांड हुआ। इस हत्याकांड ने मुस्लिम वर्ग को एक बारगी सोचने पर विवश कर डाला। आजम खान की फजीहत और उस फजीहत पर अखिलेश यादव की चुप्पी या यूं कहां जाये कि कोई स्टैंड न लेना भी मुस्लिमों के गले नहीं उतर रहा है। कुछ ऐसे ही अन्य कारण भी रहे जब उन्हें मुस्लिमों के हितों की पैरवी करने वाले बैरिस्टर की पार्टी AIMIM बेहतर नजर आयी। इसके अलावा सपा मुखिया अखिलेश यादव ने मेरठ में रोड शो जरूर किया लेकिन वह गुटबाजी को खत्म नहीं कर पाये। यह रोड शो भी मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में ही केंद्रित रहा, हिंदू इलाकों से अखिलेश ने भी परहेज किया। तभी इस पर तीखी प्रतिक्रिया करते हुए राज्य सभा सदस्य डा.लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने तंज किया कि क्या अखिलेश जी को सिर्फ मुस्लिम वोट ही चाहिये , हिंदुओं के नहीं।
(देखिये जीत की घोषणा करते हुए हरिकांत अहलूवालिया)

अब बात करते हैं भाजपा प्रत्याशी हरिकांत अहलूवालिया की जीत की। प्रत्याशियों के नामों की घोषणा के बाद जो समीकरण बने उसने हिंदू मतदाताओं को एकजुट होने के लिये बाध्य कर दिया। सीमा प्रधान जरूर हिंदू प्रत्याशी रही और इसी कारण रफीक अंसारी को नाराज करते हुए उन्हें टिकट भी दिया गया लेकिन वह हिंदू मतदाताओं में अपनी पैठ बना नहीं पायी और मुस्लिम पहले से ही कुछ और मन बना चुका था। सही सही कसर औवेसी के प्रत्याशी अनस कुरैशी ने पूरी कर दी। ऋचा सिंह भी यूं तो हिंदू प्रत्याशी थी लेकिन वह भी संभवत इसलिये अपना कोई प्रभाव नहीं दिखा पाई क्योंकि यूपी में आम आदमी पार्टी ही अपनी जगह बनाने में कामयाब नहीं हो पायी है। सपा को छोड़ सभी राजनीतिक दलों ने मुस्लिम चेहरे पर दांव लगाया और ऐसे में हरिकांत एकमात्र हिंदू चेहरे के रूप में मतदाताओं के सामने उभर कर आ गये। इसके अलावा भाजपा के दिग्गजों का सभी गिले शिकवे भुलाकर मैदान में कूदना भी हरिकांत के काम आया। युवाओं में तेजी से अपनी जगह बना रहे एमएलसी धर्मेंद्र भारद्वाज,  ऊर्जा मंत्री सोमेंद्र तोमर और कैंट विधायक अमित अग्रवाल की तिकड़ी ने भी अपना खूब रंग दिखाया और जमाया भी।

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