भ्रष्टाचार का ट्वीन टावर नोएडा में जमीदोज..ये है पूरी कहानी
- नोएडा सेक्टर 93 ए में स्थित हैं ट्वीन टावर
- तीन सौ करोड़ रुपये खर्चा आया इस प्रोजेक्ट में
- अब इवेल्यूएशन बढ़कर 800 करोड़ रुपये हो गयी कीमत
- कुतुब मीनार से ऊंची बिल्डिंग कैसे गिरायी जाये, निर्णय लेने में लगे 181 दिन
- दोनों टावर गिराने पर साढ़े 17 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान
- भ्रष्टाचार के टावर बनाने में बिल्डर, सरकार व अफसरों ने खेला नंगा नाच
- 31 मार्च निकलने के बावजूद 59 ग्राहकों का पैसा अभी तक रिफंड नहीं
- नौ सेकेंड में ध्वस्त हो गये टावर
- जिसने बनाई, जिसने बनवाई किसी को सजा नहीं- कपिल मिश्रा
- अखिलेश जवाब दें कैसे खड़ी हो गयी ये इमारतें – केशव प्रसाद मौर्य
आठ सौ करोड़ रुपये कीमत वाले सुपरटेक द्वारा नोएडा सेक्टर 93 ए में बनाये गये ट्वीन टावर यानी एपेक्स व सियान को आज दोपहर 3700 किलोग्राम बारूद लगाकर जमींदोज कर दिया गया। इसे गिराने में करीब साढ़े सत्रह करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है। सुपरटेक ने दोनों टावर्स को बनाने में करीब तीन सौ करोड़ रुपया खर्च किया था जिसकी बाद में इवेल्यूएशन बढ़कर आठ हजार करोड़ रुपये हो गयी। वाटरफॉल तकनीक से जमीदोज किये गये कुतुब मीनार से ज्यादा ऊंचे इन टावरों को बनाने में भ्रष्टाचार का नंगा नाच बिल्डर, तत्कालीन सरकार और अथारिटी अफसरों ने खेला। आखिरी तारीख 31 मार्च कब की निकल चुकी है लेकिन अभी तक 59 ग्राहकों को अभी तक पैसा रिफंड नहीं किया गया है। ट्वीन टावर में 711 लोगों ने फ्लैट्स खरीदे थे। इनमें से 652 लोगों के साथ सेटलमेंट हो चुका है।
विस्फोट के दौरान कम से कम धूल का गुबार उठे इसके लिये खास इंतजाम किये गये थे। अनुमान लगाया गया है कि ध्वस्तीकरण में 55 हजार से 80 हजार टन तक मलबा निकला है। इसे हटाने में ही कम से कम तीन माह का समय लग सकता है। देश में पहली बार इतनी ऊंची बिल्डिंग्स को जमींदोज कैसे किया जाये इसका निर्णय लेने में ही 181 दिन का समय लग गया। ट्विन टावर के आसपास छोटी-बड़ी कुल मिलाकर 6 सोसाइटी हैं और इनमें तीन हजार से अधिक फ्लैट हैं।इस बीच, ध्वस्तीकरण से पूर्व सुपरटेक मालिक आरके अरोड़ा ने कहा है कि ट्विन टावर एपेक्स और सियान नोएडा प्राधिकरण द्वारा आवंटित जमीन पर बनाए गए हैं। दोनों टावरों सहित प्रोजेक्ट के बिल्डिंग प्लान को 2009 में नोएडा प्राधिकरण द्वारा अनुमोदित किया गया था, जिसमें राज्य सरकार द्वारा घोषित तत्कालीन बिल्डिंग बायलॉज का सख्ती से पालन किया गया। बिल्डिंग प्लान के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की गई और प्राधिकरण को पूरा भुगतान करने के बाद ही बिल्डिंग का निर्माण किया गया था। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने तकनीकी स्तर पर निर्माण को सही नहीं मानते हुए दोनों टावरों को गिराने का आदेश जारी किया। हम कोर्ट आदेशों का सम्मान करते हैं और इसका पालन करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हमने ध्वस्तीकरण के लिए दुनिया की नामी एजेंसी एडिफिस इंजीनियरिंग को चुना, जो हाईराइज बिल्डिंग को सुरक्षित तरीके से ध्वस्त करने में माहिर है।
अब चर्चा करते हैं कि नोएडा के इस अतिमहत्वकांक्षी प्रोजेक्ट ट्वीन टावर की। दरअसल, नवंबर 2004 में नोएडा प्राधिकरण ने सुपरटेक एमराल्ड कोर्ट के लिए कुल 84,273 वर्ग मीटर जमीन आवंटित की थी। 16 मार्च 2005 को इसकी लीज डीड हुई। इस बीच पैमाइश में लापरवाही के कारण कई बार जमीन बढ़ी या घटी हुई भी निकल आती थी। इसके चलते यहां पर प्लॉट नंबर 4 में आवंटित जमीन के पास ही 6556.61 वर्ग मीटर जमीन का एक टुकड़ा निकल आया, जिसे बिल्डर ने अपने नाम आवंटित करा लिया। 21 जून 2006 को लीज डीड की गई लेकिन, इन दो अलग-अलग प्लॉट्स को नक्शा पास होने के बाद एक प्लॉट बना दिया गया जिस पर सुपरटेक ने एमराल्ड कोर्ट प्रोजेक्ट लॉन्च कर दिया।
गंभीर बात यह रही कि नक्शे के हिसाब से जिस जमीन पर 32 मंजिला ट्विन टावर बनाये गये थे, वहां ग्रीन पार्क दिखाया गया था। तब इस प्रोजेक्ट में सुपरटेक ने 11 मंजिल के 16 टावर्स बनाने की योजना तैयार की थी। 2008-09 में इस प्रोजेक्ट को नोएडा प्राधिकरण से कंप्लीशन सर्टिफिकेट भी मिल गया। इसी बीच 28 फरवरी 2009 को उत्तर प्रदेश शासन के नए नियम के चलते बिल्डरों को अधिक फ्लैट्स बनाने की छूट मिल गई। इसके बाद सुपरटेक ग्रुप को भी इस बिल्डिंग की ऊंचाई 24 मंजिल और 73 मीटर तक बढ़ाने की अनुमति मिल गई लेकिन इसके बाद तीसरी बार जब फिर से रिवाइज्ड प्लान में बिल्डिंग की ऊंचाई 40 और 39 मंजिला करने के साथ ही 121 मीटर तक बढ़ाने की अनुमति सुपरटेक को मिली तो होम बायर्स का सब्र टूट गया। आरडब्ल्यूए ने इसका नक्शा देने की मांग की, तमाम दरवाजे खटखटाये लेकिन सभी जगह से आश्वासन, कागजी औपचारिकता तो मिली लेकिन नक्शा नहीं मिला। भ्रष्टाचार की इन इमारतों के बारे में बताया गया कि टावर्स की ऊंचाई बढ़ने पर दो टावर के बीच दूरी को बढ़ाया जाता है। इसके मुताबिक एपेक्स और सियान टावर के बीच की न्यूनतम दूरी 16 मीटर होनी चाहिए लेकिन एमराल्ड कोर्ट के टावर इस दूसरे से महज नौ मीटर की दूरी पर हैं। बिल्डर, प्राधिकरण अफसर किस तरह अपने मंसूबे पूरे करते हैं ये इमारते इसका उदाहरण मात्र है।
दरअसल, जब यह मामला हाईकोर्ट पहुंचा तब इमारत सिर्फ 13 मंजिल थी। कोर्ट से विपरीत आदेश आ सकता है इस आशंका को देखते हुए बिल्डर ने कोर्ट का आदेश आने से पहले ही निर्माण कार्य को कई गुना स्पीड दे दी और महज ड़ेढ़ साल में इसे 32 मंजिल तक पहुंचा दिया। इसमें कोई संदेश नहीं कि इस कार्य में प्राधिकरण के भ्रष्ट अफसरों ने बिल्डर आरके अरोड़ा का खुल कर साथ दिया। मामला कोर्ट में विचारणीय है इसकी आड़ लेते हुए। कोर्ट का आदेश आया तो काम रोक दिया गया जानकारों का मानना है कि अगर टावर 24 मंजिल पर रुक जाते तो 2 टावर्स के बीच की दूरी का नियम टूटने से बच जाता और यह मामला सुलझ सकता था लेकिन नियति को कुछ और मंजूर था। इसके बाद कोई रास्ता न दिखाई देने पर 2012 में बायर्स इलाहाबाद हाई कोर्ट चले गये। कोर्ट के आदेश पर पुलिस जांच हुई लेकिन वह भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गयी। और अंत में तमाम कानूनी दांव पेच की बीच सुप्रीम कोर्ट का आदेश आया कि टावर्स को 21 अगस्त को गिरा दिया जाये मगर नोएडा प्राधिकरण के अनुरोध के बाद इसकी तारीख 28 अगस्त कर दी गई। इमारत को आज 28 अगस्त को कंट्रोल्ड ब्लास्टिंग की मदद से दोपहर 2:30 बजे गिरा दिया गया।
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