यह आम धारणा है कि सीबीआई का इस्तेमाल हमेशा से ही सत्ताधारी दल अपने विपक्षियों को काबू में करने के लिये करते रहे हैं। यही कारण रहा है कि सीबीआई को राजनीतिक जुबान में तोता भी कह दिया जाता है। पिछले 18 सालों में सीबीआई के रेकार्ड पर नजर डाली जाये तो कांग्रेस व भाजपा की सरकारों में करीब दो सौ प्रमुख राजनेताओं पर सीबीआई ने हाथ डाला है। भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए के आठ सालों में कम से कम 124 प्रमुख नेताओं को सीबीआई जांच का सामना करना पड़ा। दिलचस्प तथ्य यह है कि इनमें से 118 विपक्ष से हैं। यह भी तथ्य सामने आया है कि जिन लोगों ने भाजपा का दामन थाम लिया है उनके खिलाफ सीबीआई का रूख नरम पड़ गया है, हालांकि इसे सीबीआई मात्र संयोग बताती है।
इस आशय की रिपोर्ट द इंडियन एक्सप्रेस ने प्रकाशित की है। बताया गाय है कि ऑफ कोर्ट रिकॉर्ड्स, आधिकारिक दस्तावेजों, एजेंसी के बयानों और रिपोर्टों की एक जांच से पता चलता है कि साल 2014 में एनडीए के सत्ता में आने के बाद से यह प्रवृत्ति काफी तेज हो गई है। कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए के 10 सालों (2004-2014) के दौरान कम से कम 72 नेता सीबीआई जांच के दायरे में आए थे। इनमें से 43 (60 प्रतिशत) विपक्ष से थे।
वहीं भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए के आठ साल में 124 प्रमुख नेता सीबीआई जांच के दायरे में आये हैं। इनमें से 118 विपक्ष से हैं, यानी 95 प्रतिशत। सीबीआई के जाल में एनडीए के दूसरे कार्यकाल में एक मुख्यमंत्री समेत 12 पूर्व मुख्यमंत्री, 10 मंत्री, 34 सांसद, 27 विधायकों के अलावा 10 पूर्व विधायक और 6 पूर्व सांसद फंस चुके हैं जबकि यूपीए के दौर में चार पूर्व मुख्यमंत्रियों के अलावा दो मंत्री, 13 सांसद, 15 विधायक, एक पूर्व विधायक और 3 पूर्व सांसद शामिल हैं।
रिपोर्ट में यह भी पाया गया है कि अगर नेता सीबीआई की रडार पर है और इस दौरान पार्टी बदल लेता है तो उसके खिलाफ चल रही कार्रवाई भी ठंडे बस्ते में चली जाती है, हालांकि, सीबीआई ने द इंडियन एक्सप्रेस के एक सवाल का जवाब नहीं दिया, लेकिन एजेंसी के एक अधिकारी ने इसे “केवल एक संयोग” कहा और इस बात से इनकार किया कि विपक्षी नेताओं को निशाना बनाया गया था।
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