चुनाव ड्यूटी के दौरान संक्रमित हुए यूपी के 1621 शिक्षक कर्मचारियों की कोरोना से मौत, संघ ने सूची दी
-संघ ने चार बार चुनाव न कराने का आग्रह किया था
-चारों बार इस आग्रह को टाल दिया गया
-मतगणना बहिष्कार की बात भी कही लेकिन बात नहीं बनी
-सुप्रीम कोर्ट के रोकने से इनकार करने पर करनी पड़ी ड्यूटी
-मरने वालों की आजमगढ़ में सर्वाधिक संख्या
लखनऊ। कारण चाहे कुछ भी रहा हो लेकिन यूपी में पंचायत चुनाव कराना शिक्षकों व कर्मचारियों के लिये जान की आफत बन गया है। ड्यूटी के दौरान संक्रमण की चपेट में आने से अब तक 1621 शिक्षक व शिक्षा विभाग के कर्मचारी दम तोड़ चुके हैं। मरने वालों में उनके संपर्क में आने पर संक्रमित हुए परिजनों को शामिल नहीं किया गया है। मरने वालों में शिक्षकों, शिक्षा मित्रों, अनुदेशकों और बेसिक शिक्षा विभाग के कर्मचारी शामिल हैं।
उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षक संघ ने 16 मई को इस आशय की सूची जारी कर यह जानकारी दी है। इसके पहले संघ ने 28 अप्रैल को जो सूची जारी की थी उसमें कोरोना संक्रमण से 706 शिक्षकों-कर्मचारियों की मौत होने का हवाला दिया था। संघ ने मुख्यमंत्री को यह सूची भेजते हुए एक करोड़ की आर्थिक सहायता, उनके परिजनों को नौकरी दिए जाने सहित आठ मांगें की हैं। इस सूची में जान गंवाने वाले शिक्षकों के नाम, उनके विद्यालय के नाम, पदनाम, ब्लॉक व जनपद का नाम, मृत्यु की तिथि और दिवंगत शिक्षक के परिजन का मोबाइल नंबर भी दिया गया है। इसके मुताबिक आजमगढ़ जिले में सर्वाधिक 68 शिक्षकों-कर्मचारियों की मृत्यु हुई है। गोरखपुर में 50, लखीमपुर में 47, रायबरेली में 53, जौनपुर में 43, इलाहाबाद में 46, लखनऊ में 35, सीतापुर में 39, उन्नाव में 34, गाजीपुर में 36, बाराबंकी में 34 शिक्षकों-कर्मचारियों की मौत हुई है। प्रदेश के 23 ऐसे जिले हैं जहां 25 से अधिक शिक्षकों-कर्मचारियों की कोरोना संक्रमण से मौत हुई है।
संघ ने यह भी कहा है कि उसके द्वारा 12 अप्रैल, 22 अप्रैल, 28 अप्रैल और 29 अप्रैल को उत्तर प्रदेश शासन और राज्य निर्वाचन आयोग को पत्र लिखकर कोरोना महामारी को देखते हुए पंचायत चुनाव स्थगित करने की मांग की थी लेकिन उस पर ध्यान नहीं दिया गया. आखिर में संघ ने मतगणना बहिष्कार की घोषणा की लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा मतगणना पर रोक लगाने से इनकार करने पर उन्हें मतगणना कार्य में हिस्सा लेना पड़ा। संघ ने यह आरोप भी पत्र में लगाया है कि राज्य सरकार और निर्वाचन आयोग ने कहा था कि मतगणना में कोविड से बचाव के गाइडलाइन का पालन किया जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ जिसके कारण मतगणना में ड्यूटी करते हुए अनेक शिक्षक कोविड-19 से संक्रमित हुए और उनकी जान भी गई। शिक्षक संघ ने कहा है कि राज्य सरकार ने वादा किया था कि मतदान व मतगणना में ड्यूटी नहीं करने वाले बीमार शिक्षकों-कर्मचारियों के खिलाफ कार्यवाही नहीं की जाएगी लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है. जिला प्रशासन लगातार कार्यवाही कर रहा है.
संघ के अध्यक्ष डा. दिनेश चंद्र शर्मा और महामंत्री संजय सिंह ने पत्र में सरकार को याद दिलाया है कि कोरोना महामारी के पहली लहर में प्राथमिक शिक्षकों ने मुख्यमंत्री राहत कोष में 76 करोड़ रुपये दिए थे। राशन की दुकानों खड़े होकर गरीबों तक राशन पहुंचाया था और जब विद्यालय खुले तो अधिक संख्या में छात्र-छात्राओं का नामांकन कराया लेकिन इसके बदले सरकार ने शिक्षकों को बंद विद्यालयों में बैठने को मजबूर किया, उनसे ऑपरेशन कायाकल्प में ड्यूटी करवाई, पंचायत चुनाव में काम कराया किया और अब कोविड कंटोल रूम में ड्यूटी करा रही है.
शिक्षक संघ ने पत्र में मांग की है कि कोरोना महामारी के दौरान मृत हुए शिक्षकों के परिवार को एक करोड़ की आर्थिक सहायता देने, सभी मृत शिक्षकों के ऐसे आश्रितों को जो बीटीसी, बीएड, डीएलएड की योग्यता रखते हैं उन्हें शिक्षक पात्रता परीक्षा टीईटी से छूट देकर सहायक अध्यापक के पद पर नियुक्ति करने, जो आश्रित उक्त योग्यता नहीं रखते तथा इंटरमीडिएट अथवा स्नातक हैं, उन्हें लिपिक पद नियुक्ति दी जाए।