नई संसद का उद्घाटन राष्ट्रपति से कराने की जिद पर अड़ा विपक्ष, मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा
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नई संसद का उद्घाटन राष्ट्रपति से कराने की जिद पर अड़ा विपक्ष, मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा

May 25, 2023
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  • 862 करोड़ रुपये थी अनुमानित कीमत
  • अब 1200 करोड़ रुपये में नई संसद बनकर तैयार
  • 28 मई को पीएम मोदी करेंगे उद्घाटन
  • विपक्ष राष्ट्रपति से कराने की मांग पर अड़ा
  • विपक्ष ने उद्घाटन समारोह का किया बहिष्कार
  • सुप्रीम कोर्ट में भी पीआईएल हुई दायर

1200 करोड़ रुपये की लागत से बनकर संसद भवन की नयी बिल्डिंग तैयार हो गयी है। 28 मई को पीएम नरेंद्र मोदी इसका उद्घाटन करेंगे। प्रधानमंत्री के हाथों इसका उद्घाटन कराना विवाद का कारण बन गया है। कांग्रेस समेत विपक्ष का कहना है कि एक व्यक्ति के अहंकार और खुद का प्रचार करने की इच्छा ने देश की पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति के हाथों से संसद का उद्घाटन किए जाने का गौरव छीन लिया गया है। वहीं इस मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक पीआईएल भी दायर हो गई है। इस  याचिका में पीएम मोदी के हाथों संसद का उद्घाटन करने का विरोध किया गया है। 28 मई को वीर सावरकर का भी जन्मदिन है। ये भी विवाद का एक बड़ा कारण बताया जा रहा है।

सुप्रीम कोर्ट में दायर पीआईएल में कहा गया है कि राष्ट्रपति देश की प्रथम नागरिक हैं। संविधान के अनुच्छेद 79 के मुताबिक राष्ट्रपति संसद का भी अनिवार्य हिस्सा हैं। लोकसभा सचिवालय ने उनसे उद्घाटन न करवाने का जो फैसला लिया है, वह गलत है। यह याचिका तमिलानाडु के पेशे से वकील जयासुकिन ने दायर की है। याचिका में कहा गया है कि देश के संवैधानिक प्रमुख होने के नाते राष्ट्रपति ही प्रधानमंत्री की नियुक्ति करते हैं। सभी बड़े फैसले भी राष्ट्रपति के नाम पर लिए जाते हैं। अनुच्छेद 85 के तहत राष्ट्रपति ही संसद का सत्र बुलाते हैं। अनुच्छेद 87 के तहत उनका संसद में अभिभाषण होता है, जिसमें वह दोनों सदनों को संबोधित करते हैं। संसद से पारित सभी विधेयक राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद ही कानून बनते हैं। लिहाजा राष्ट्रपति से ही संसद के नए भवन का उद्घाटन करवाया जाना चाहिए। जयासुकिन का यह भी कहना है कि 18 मई को लोकसभा सचिवालय ने संसद भवन के उद्घाटन के लिए जो निमंत्रण पत्र जारी किया है, वह असंवैधानिक है।  याचिका में सुप्रीम कोर्ट यह निर्देश देने की मांग की गई है कि उद्घाटन राष्ट्रपति से करवाया जाए।

एक ओर जहां भाजपा उद्घाटन समारोह को गौरव का पल बताते हुए जश्न मना रही है वहीं विपक्ष इस समारोह का बहिष्कार कर रहा है। 15 राजनीतिक दल जहां भाजपा के साथ खड़े हैं वहीं बीस अन्य विपक्षी दल भी कांग्रेस के साथ खड़े हैं। इन दलों का कहना है कि यह लोकतंत्रिक तरीका नहीं है। भाजपा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से उद्घाटन न कराकर उनके पद का अपमान कर रही है।
नई संसद का उद्घाटन मोदी करें अथवा राष्ट्रपति इस मुद्दे पर पक्ष व विपक्ष के गणित को देखा जाये तो विपक्ष की लोकसभा में कुल ताकत 147 जबकि राज्यसभा में 96 है। यानी मौजूदा वक्त में विपक्षी  दलों के पास लोकसभा का 26.97 फीसदी जबकि राज्यसभा का 40.33 फीसदी हिस्सा है। 21 विपक्षी दल कांग्रेस के साथ हैं।  इन दलों में कांग्रेस, डीएमके (द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम), AAP, शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट), समाजवादी पार्टी, भाकपा, झामुमो, केरल कांग्रेस (मणि), विदुथलाई चिरुथिगल कच्ची, रालोद, टीएमसी, जदयू, एनसीपी, सीपीआई (एम), आरजेडी, AIMIM, AIUDF (ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट), इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, नेशनल कॉन्फ्रेंस, रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी और मरुमलार्ची द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम (एमडीएमके) शामिल हैं।
उधर मोदी के समर्थन में जो दल भाजपा के साथ हैं उनमें  शिवसेना (शिंदे गुट), नेशनल पीपल्स पार्टी, नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी, सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा, राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी, अपना दल – सोनीलाल, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया, तमिल मनीला कांग्रेस, अन्नाद्रमुक, आजसू (झारखंड), मिजो नेशनल फ्रंट, वाईएसआरसीपी, टीडीपी, बीजद और शिरोमणि अकाली दल शामिल हैं।

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