कृषि क्षेत्र की बिगड़ती हालत संभालने के लिए नई नीतियों की जरूरत ।।
दिल्ली की सीमाओं पर डटे किसानों और सरकार के बीच गतिरोध जारी है. पिछले कुछ वर्षों में जब तक किसान आंदोलन होते रहे हैं और ये दर्शाता है कि नीतियां बनाने में किसानों को लेकर कितना फौरी रवैया अपनाया जाता है. ये हालत तब है जब भारत की कुल कामकाजी आबादी के 40% कामगारों को रोजगार कृषि से मिलता है और ग्रामीण आबादी का करीब 70% इसी पर निर्भर है. हालांकि, खेती से उन्हें बहुत मामूली आमदनी होती है । वित्त वर्ष 2020 में देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में कृषि का हिस्सा महज 14.65 फीसदी रहा जो कि वित्त वर्ष 2015 के 22.6 फीसदी से कम है. इस अवधि के दौरान कृषि सेक्टर में सालाना 3.6 फीसदी के औसत से वृद्धि हुई, जबकि देश की अर्थव्यवस्था 6.7 फीसदी की दर से बढ़ रही थी । खेती के हालात पर बारीक नजर डालें तो इसके हर पहलू के बारे में पता चलता है. भूमि, श्रम और पूंजी जैसे उत्पादन कारकों से लेकर मार्केटिंग, व्यापार और फसल को नुकसान से बचाने तक-हर मसले पर एक व्यापक समीक्षा और नई नीतियों की जरूरत है । 2011 की जनगणना में पहली बार सामने आया कि भूमिहीन कृषि मजदूरों की संख्या किसानों की संख्या से ज्यादा हो गई है. कृषि पर निर्भर लोगों की दो श्रेणियां हैं. एक किसान और दूसरे भूमिहीन कृषि मजदूर. कृषि पर निर्भर लोगों में भूमिहीन मजदूर 55 फीसदी हैं और इनकी संख्या 14.4 करोड़ है. वहीं काश्तकार किसानों का प्रतिशत 45 है और इनकी संख्या महज 11.8 करोड़ है ।।