गजब- पांच दिन बाद नगर आयुक्त बोले-उन्हें जांच करने का अधिकार नहीं
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गजब- पांच दिन बाद नगर आयुक्त बोले-उन्हें जांच करने का अधिकार नहीं

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  • नगर निगम बोर्ड बैठक में बवाल का मामला
  • महापौर ने नगर आयुक्त को दिया था जांच का जिम्मा
  • दो दिन में जांच रिपोर्ट देने के दिये थे आदेश
  • भाजपाई लगा रहे एसएसपी व डीएम कार्यालय पर नारे
  • विपक्ष की रिपोर्ट दर्ज,भाजपाई नजर आये बेबस

अनाड़ी का खेलना खेल का सत्यानाश। कुछ ऐसा ही इन दिनों हो रहा है नगर निगम में। जुलूस के रूप में कलेक्ट्रेट पहुंची  भाजपा की पीड़ित महिलाएं आंसू बहा रही हैं। भीषण सर्दी की परवाह न कर वे कलेक्ट्रेट पहुंच कर सवाल कर रही हैं कि उन्हें आहत करने वाली घटना की रिपोर्ट योगी सरकार में भी क्यों नहीं लिखी जा रही है। भाजपा के जिला व महानगर अध्यक्ष भी हाथों में स्लोगन लिखी तख्तियां लेकर रोजाना नारेबाजी का नेतृत्व कर रहे हैं लेकिन पुलिस रिपोर्ट दर्ज नहीं कर रही। कारण साफ है कि सदन के भीतर हुई किसी भी घटना की रिपोर्ट वह तब तक दर्ज नहीं कर सकती जब तक की सदन ही उसे कोई आदेश न दे। दो बार महापौर बने हरिकांत अहलूवालिया ने घटना के तुरंत बाद ही नगर आयुक्त को कमेटी बनाकर जांच रिपोर्ट दो दिन में देने के लिये आदेशित कर दिया, लेकिन महापौर भी यह भूल गये कि उस सदन की जांच का अधिकार नगर आयुक्त को नहीं है, जिसके अधीन होकर वह काम करते हैं। नतीजा आज सामने आ गया। जिस रिपोर्ट के इंतजार में पुलिस रिपोर्ट दर्ज नहीं कर पा रही थी, और जिस रिपोर्ट पर सभी की निगाह लगी थी, आज उसे देने में नगर आयुक्त अमित पाल शर्मा ने पांच दिन बाद हाथ खड़े कर दिये। नगर आयुक्त का कहना है कि नगर निगम अधिनियम उन्हें इसकी इजाजत नहीं देता है। यानी नगर निगम चलाने वाले नगर आयुक्त को पांच दिन बाद इसका पता चला और महापौर को तो पता ही नहीं है। अब महापौर का कहना है कि वह अब खुद जांच समिति गठित कर जांच कराएंगे। साफ है कि अभी कुछ दिन और बेबस व आहत भाजपाइयों को अपनी ही सरकार में अपनी ही रिपोर्ट लिखाने के लिये जद्दोजहद करनी पड़ेगी।

आपको याद होगा 30 दिसम्बर को नगर निगम की बोर्ड बचत बैठक में भाजपा की महिला पार्षद रेखा सिंह के इस बयान पर विवाद खड़ा हो गया था कि गृहकर वसूली के लिये टीम हिंदू इलाकों में जाकर मिस बिहेव तो करती है लेकिन मुस्लिम इलाकों में नहीं जाती। बजट बैठक में हालांकि अन्य विषय पर चर्चा नहीं हो सकती लेकिन नियम विरूद्ध इस सवाल पर यहीं से विवाद खड़ा हो गया। धक्का मुक्की हुई और फिर जमकर मारपीट। आरोप दोनों पक्षों पर हैं। महापौर हरिकांत अहलुवालिया ने तुरंत ही नगर आयुक्त को जांच कमेटी गठित करने व दो दिन में रिपोर्ट देने के दनदनाते हुए आदेश दे दिये।

 दरअसल, मामला सदन के भीतर का था, और सदन के भीतर क्या हुआ इसकी जांच करने का अधिकार सदन मुखिया को ही है,नगर आयुक्त को तो बिल्कुल भी नहीं, क्योंकि वह खुद ही सदन के अधीन होकर कार्य करते हैं। यहां इस बात का उल्लेख भी अनिवार्य हो जाता है कि सदन चाहे कोई भी हो, लोकसभा या  विधानसभा, सदन के भीतर होने वाले शोर शराबे की जांच सभापति यानी महापौर द्वारा गठित कमेटी की करती है, अन्य कोई नहीं। इसके अलावा पुलिस को भी तब तक भीतर जाकर कार्रवाई का अधिकार नहीं होता जब तक कि सभापति ही उसे न बुलाये। 

पूर्व में महापौर शाहिद अखलाक ने तत्कालीन एसपी सिटी सतेंद्र सिंह को सदन से यह कहते हुए बाहर निकाल दिया था कि आप भीतर कैसे घुसे। सदन में बवाल के बाद ही एसपी सिटी वहां पहुंचे थे। तत्कालीन महापौर शाहिद अखलाक ने एसपी सिटी सतेंद्र सिंह पर यह गंभीर आरोप तक चस्पा कर दिया था कि वह उनकी हत्या कराना चाहते हैं। बाद में एसपी सिटी ने शाहिद अखलाक के खिलाफ थाना देहली गेट में तस्करा भी डाल दिया था। यानी स्पष्ट है कि सदन के भीतर पुलिस को भी कोई कार्रवाई करने का अधिकार नहीं हैं। यहां बात केवल सदन के भीतर की हो रही है। 

आज एक बार फिर से भाजपा महानगर अध्यक्ष सुरेश जैन रितुराज के नेतृत्व में भाजपाइयों ने एसएसपी आफिस के बाहर रिपोर्ट दर्ज कराने को लेकर नारेबाजी की। जाहिर है कि इस नारेबाजी का कोई असर होगा नगर निगम अधिनियम ऐसा कोई संकेत नहीं देता है।

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